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ߞߎ߬ߙߣߊ߬ ߞߟߊߒߞߋ ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌߘߊ - ߟߊߘߛߏߣߍ߲" ߞߎ߬ߙߣߊ߬ ߞߟߊߒߞߋ ߞߘߐߦߌߘߊ ߘߐ߫ ߤߌߣߘߌߞߊ߲ ߘߐ߫ * - ߘߟߊߡߌߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ


ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌ߬ߘߊ߬ߟߌ ߝߐߘߊ ߘߏ߫: ߞߟߏߝߋ߲ ߠߎ߬   ߟߝߊߙߌ ߘߏ߫:
وَكَذٰلِكَ فَتَنَّا بَعْضَهُمْ بِبَعْضٍ لِّیَقُوْلُوْۤا اَهٰۤؤُلَآءِ مَنَّ اللّٰهُ عَلَیْهِمْ مِّنْ بَیْنِنَا ؕ— اَلَیْسَ اللّٰهُ بِاَعْلَمَ بِالشّٰكِرِیْنَ ۟
और इसी तरह हमने उनमें से कुछ का कुछ के साथ परीक्षण किया। चुनाँचे हमने उन्हें सांसारिक सुख-सुविधाओं में भिन्न-भिन्न कर दिया। हमने इसके द्वारा उनका परीक्षण किया ताकि धनवान काफ़िर, ग़रीब ईमान वालों से कहें : क्या यही ग़रीब लोग हैं, जिनपर अल्लाह ने हमारे बीच से मार्गदर्शन प्रदान किया है?! यदि ईमान अच्छा काम होता, तो वे इसमें हमसे पहल नहीं कर पाते, क्योंकि हम पहल करने वाले लोग हैं। क्या अल्लाह उन लोगों के बारे में अधिक जानने वाला नहीं है जो उसकी नेमतों के लिए आभारी हैं, इसलिए वह उन्हें ईमान का सामर्थ्य प्रदान करता है, तथा उनकी नाशुक्री करने वालों के बारे में अधिक जानने वाला नहीं है, इसलिए वह उन्हें विफल कर देता है, चुनाँचे वे ईमान नहीं लाते?! क्यों नहीं, निःसंदेह अल्लाह उन्हें सबसे अधिक जानने वाला है।
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وَاِذَا جَآءَكَ الَّذِیْنَ یُؤْمِنُوْنَ بِاٰیٰتِنَا فَقُلْ سَلٰمٌ عَلَیْكُمْ كَتَبَ رَبُّكُمْ عَلٰی نَفْسِهِ الرَّحْمَةَ ۙ— اَنَّهٗ مَنْ عَمِلَ مِنْكُمْ سُوْٓءًا بِجَهَالَةٍ ثُمَّ تَابَ مِنْ بَعْدِهٖ وَاَصْلَحَ ۙ— فَاَنَّهٗ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
जब (ऐ रसूल!) आपके पास वे लोग आएँ, जो हमारी उन आयतों पर ईमान रखते हैं, जो आपके लाए हुए संदेश की सच्चाई की गवाही देती हैं, तो उनके सम्मान में उन्हें सलाम कहें और उन्हें अल्लाह की दया की विशालता की खुशख़बरी दें। क्योंकि अल्लाह ने अपने अनुग्रह से दया करना अपने ऊपर अनिवार्य कर लिया है। अतः तुममें से जो कोई भी अज्ञानता और मूर्खता की स्थिति में पाप कर बैठे, फिर वह उसे करने के बाद तौबा कर ले और अपने कर्मों को सुधार ले, तो निश्चय अल्लाह उसके किए हुए पाप को क्षमा कर देगा। क्योंकि अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदों को क्षमा करने वाला, तथा उनपर दया करने वाला है।
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وَكَذٰلِكَ نُفَصِّلُ الْاٰیٰتِ وَلِتَسْتَبِیْنَ سَبِیْلُ الْمُجْرِمِیْنَ ۟۠
जिस प्रकार हमने आपके लिए वे बातें स्पष्ट कीं, जिनका उल्लेख किया गया, उसी तरह हम असत्यवादियों के खिलाफ़ अपने प्रमाणों और तर्कों को स्पष्ट रूप से वर्णन करते हैं, तथा अपराधियों के मार्ग और उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए; ताकि उससे बचा जा सके और सावधान रहा जाए।
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قُلْ اِنِّیْ نُهِیْتُ اَنْ اَعْبُدَ الَّذِیْنَ تَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ؕ— قُلْ لَّاۤ اَتَّبِعُ اَهْوَآءَكُمْ ۙ— قَدْ ضَلَلْتُ اِذًا وَّمَاۤ اَنَا مِنَ الْمُهْتَدِیْنَ ۟
(ऐ रसूल!) आप कह दें : अल्लाह ने मुझे उनकी इबादत करने से मना कर दिया है जिनकी तुम अल्लाह के अलावा पूजा करते हो। (ऐ रसूल!) आप कह दें : मैं अल्लाह के अलावा किसी और की पूजा करने में तुम्हारी इच्छाओं का पालन नहीं करता। क्योंकि अगर मैं इस बारे में तुम्हारी इच्छाओं का पालन करू, तो मैं सत्य के मार्ग से भटका हुआ हूँगा, मैं उसकी ओर मार्गदर्शन नहीं पा सकूँगा। और यही हर उस व्यक्ति का मामला है, जो अल्लाह की ओर से किसी प्रमाण के बिना अपनी इच्छा का पालन करता है।
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قُلْ اِنِّیْ عَلٰی بَیِّنَةٍ مِّنْ رَّبِّیْ وَكَذَّبْتُمْ بِهٖ ؕ— مَا عِنْدِیْ مَا تَسْتَعْجِلُوْنَ بِهٖ ؕ— اِنِ الْحُكْمُ اِلَّا لِلّٰهِ ؕ— یَقُصُّ الْحَقَّ وَهُوَ خَیْرُ الْفٰصِلِیْنَ ۟
(ऐ रसूल!) आप इन मुश्रिकों से कह दें : मैं अपने रब की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण पर क़ायम हूँ, न कि मन की इच्छा पर। और तुमने इस प्रमाण को झुठला दिया है। मेरे पास वह यातना नहीं है, जिसके लिए तुम जल्दी मचा रहे हो और न ही चमत्कारी निशानियाँ जो तुमने माँगी हैं। बल्कि वह केवल अल्लाह के हाथ में है। क्योंकि निर्णय करना (जिसमें वह भी शामिल है जिसकी तुमने माँग की है) केवल अल्लाह का अधिकार है। वह सत्य कहता है और उसके द्वारा फैसला करता है। और वह महिमावान सबसे अच्छा है, जिसने सत्यवादियों और असत्यवादियों को खोलकर बयान किया और उनके बीच अंतर स्पष्ट किया।
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قُلْ لَّوْ اَنَّ عِنْدِیْ مَا تَسْتَعْجِلُوْنَ بِهٖ لَقُضِیَ الْاَمْرُ بَیْنِیْ وَبَیْنَكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِالظّٰلِمِیْنَ ۟
(ऐ रसूल!) आप उनसे कह दें : यदि मेरे पास और मेरे अधिकार में वह यातना होती जिसके लिए तुम जल्दी कर रहे हो, तो मैं उसे तुमपर अवश्य उतार देता। और उस समय मेरे और तुम्हारे बीच मामले का फैसला कर दिया जाता। (लेकिन मामला अल्लाह के अधिकार में है) और अल्लाह अत्याचारियों को अधिक जानता है कि वह उन्हें कितनी मोहलत देगा और कब उन्हें दंडित करेगा।
ߊߙߊߓߎߞߊ߲ߡߊ ߞߘߐߦߌߘߊ ߟߎ߬:
وَعِنْدَهٗ مَفَاتِحُ الْغَیْبِ لَا یَعْلَمُهَاۤ اِلَّا هُوَ ؕ— وَیَعْلَمُ مَا فِی الْبَرِّ وَالْبَحْرِ ؕ— وَمَا تَسْقُطُ مِنْ وَّرَقَةٍ اِلَّا یَعْلَمُهَا وَلَا حَبَّةٍ فِیْ ظُلُمٰتِ الْاَرْضِ وَلَا رَطْبٍ وَّلَا یَابِسٍ اِلَّا فِیْ كِتٰبٍ مُّبِیْنٍ ۟
केवल अल्लाह ही के पास ग़ैब (परोक्ष) के खज़ाने हैं, जिन्हें उसके अलावा कोई और नहीं जानता। भूमि पर जो भी मख़्लूक़ात जैसे जानवर, पौधे और निर्जीव चीज़ें हैं, वह उन्हें जानता है, तथा वह जानता है जो कुछ समुद्र में जानवर, पौधे और निर्जीव चीज़ें हैं। तथा न कहीं कोई पत्ता गिरता है, और न ज़मीन में छिपा हुआ कोई दाना है, और न कोई गीली चीज़ है और न कोई सूखी चीज़, परंतु वह एक स्पष्ट पुस्तक अर्थात् 'लौह़े महफ़ूज़' में अंकित (संरक्षित) है।
ߊߙߊߓߎߞߊ߲ߡߊ ߞߘߐߦߌߘߊ ߟߎ߬:
ߟߝߊߙߌ ߟߎ߫ ߢߊ߬ߕߣߐ ߘߏ߫ ߞߐߜߍ ߣߌ߲߬ ߞߊ߲߬:
• الله تعالى يجعل العباد بعضهم فتنة لبعض، فتتفاوت درجاتهم في الرزق وفي الكفر والإيمان، والكفر والإيمان ليس منوطًا بسعة الرزق وضيقه.
• अल्लाह तआला बंदों को एक दूसरे के लिए एक परीक्षण बना देता है। इसलिए रोज़ी में तथा कुफ्र एवं ईमान में उनके स्तर भिन्न होते हैं। हालाँकि ईमान और कुफ्र रोज़ी के विस्तार और उसकी संकीर्णता के साथ जुड़े हुए नहीं हैं।

• من أخلاق الداعية طلاقة الوجه وإلقاء التحية والتبسط والسرور بأصحابه.
• अल्लाह के मार्ग की ओर बुलाने वाले व्यक्ति के शिष्टाचार में से अपने साथियों के साथ हँसमुख होना, सलाम करना और उनसे मिलकर प्रसन्न होना है।

• على الداعية اجتناب الأهواء في عقيدته ومنهجه وسلوكه.
• अल्लाह के मार्ग की ओर बुलाने वाले व्यक्ति को अपने ऐतिक़ाद, दृष्टिकोण और व्यवहार में इच्छाओं के पीछे चलने से बचना चाहिए।

• إثبات تفرد الله عز وجل بعلم الغيب وحده لا شريك له، وسعة علمه في ذلك، وأنه لا يفوته شيء ولا يعزب عنه من مخلوقاته شيء إلا وهو مثبت مدوَّن عنده سبحانه بأدق تفاصيله.
• इस बात को साबित करना कि ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञान केवल अल्लाह सर्वशक्तिमान के साथ विशिष्ट है, जो अकेला है, उसका कोई साझी नहीं। तथा उसमें उसका ज्ञान बहुत विस्तृत है। उससे कोई चीज़ छूटती नहीं है और न उसकी मख़्लूक़ात में से कोई चीज़ उससे ग़ायब होती है, परंतु वह उस महिमावान के पास सबसे सटीक विवरण के साथ लिखी हुई है।

 
ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌ߬ߘߊ߬ߟߌ ߝߐߘߊ ߘߏ߫: ߞߟߏߝߋ߲ ߠߎ߬
ߝߐߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ ߞߐߜߍ ߝߙߍߕߍ
 
ߞߎ߬ߙߣߊ߬ ߞߟߊߒߞߋ ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌߘߊ - ߟߊߘߛߏߣߍ߲" ߞߎ߬ߙߣߊ߬ ߞߟߊߒߞߋ ߞߘߐߦߌߘߊ ߘߐ߫ ߤߌߣߘߌߞߊ߲ ߘߐ߫ - ߘߟߊߡߌߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ

ߡߍ߲ ߝߘߊߣߍ߲߫ ߞߎ߬ߙߊ߬ߣߊ ߞߘߐߦߌߘߊ ߕߌߙߌ߲ߠߌ߲ ߝߊ߲ߓߊ ߟߊ߫

ߘߊߕߎ߲߯ߠߌ߲