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ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌ߬ߘߊ߬ߟߌ ߝߐߘߊ ߘߏ߫: ߕߓߊߞߘߐߣߍ߲߫   ߟߝߊߙߌ ߘߏ߫:
قَالَ الْمَلَاُ الَّذِیْنَ اسْتَكْبَرُوْا مِنْ قَوْمِهٖ لَنُخْرِجَنَّكَ یٰشُعَیْبُ وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مَعَكَ مِنْ قَرْیَتِنَاۤ اَوْ لَتَعُوْدُنَّ فِیْ مِلَّتِنَا ؕ— قَالَ اَوَلَوْ كُنَّا كٰرِهِیْنَ ۟ۚ
शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम के घमंडी प्रमुखाें और बड़े लोगों ने शुऐब अलैहिस्सलाम से कहा : (ऐ शुऐब!) हम तुझे और तेरे साथ तेरी बात मानने वालों काे अपने इस गाँव से अवश्य निकाल देंगे, या तुम अवश्य ही हमारे धर्म में वापस आ जाओगे। तो शुऐब अलैहिस्सलाम ने इनकार करते हुए और आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा : क्या हम तुम्हारे धर्म पर चलने लगें, अगरचे हम उसे नापसंद ही करते हों, क्योंकि हम जानते हैं कि तुम्हारा धर्म असत्य है?!
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قَدِ افْتَرَیْنَا عَلَی اللّٰهِ كَذِبًا اِنْ عُدْنَا فِیْ مِلَّتِكُمْ بَعْدَ اِذْ نَجّٰىنَا اللّٰهُ مِنْهَا ؕ— وَمَا یَكُوْنُ لَنَاۤ اَنْ نَّعُوْدَ فِیْهَاۤ اِلَّاۤ اَنْ یَّشَآءَ اللّٰهُ رَبُّنَا ؕ— وَسِعَ رَبُّنَا كُلَّ شَیْءٍ عِلْمًا ؕ— عَلَی اللّٰهِ تَوَكَّلْنَا ؕ— رَبَّنَا افْتَحْ بَیْنَنَا وَبَیْنَ قَوْمِنَا بِالْحَقِّ وَاَنْتَ خَیْرُ الْفٰتِحِیْنَ ۟
यदि हम भी तुम्हारी ही तरह शिर्क व कुफ़्र का अक़ीदा रखने लगें, जबकि अल्लाह ने हमें अपनी कृपा से उससे बचा लिया है, तो हम अल्लाह पर झूठ गढ़ने वाले ठहरेंगे। और हमसे यह भी नहीं हो सकता कि तुम्हारे असत्य धर्म की ओर लौट आएँ। परंतु यह कि हमारा पालनहार अल्लाह ऐसा चाहे। क्योंकि सब उसी के इरादे के अधीन हैं। हमारे पालनहार ने प्रत्येक वस्तु को अपने ज्ञान के दायरे में ले रखा है। उससे कुछ भी छिपा नहीं है। केवल अल्लाह ही पर हमारा भरोसा है कि वह हमें सीधे रास्ते पर सुदृढ़ रखेगा और जहन्नम के रास्तों से बचाएगा। ऐ हमारे पालनहार! हमारे और हमारी काफ़िर जाति के बीच न्याय के साथ निर्णय कर दे। अतः सत्यवादी मज़लूम को हठी ज़ालिम के विरुद्ध विजय प्रदान कर। क्योंकि तू ही (ऐ हमारे पालनहार!) सबसे उत्तम निर्णय करने वाला है।
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وَقَالَ الْمَلَاُ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا مِنْ قَوْمِهٖ لَىِٕنِ اتَّبَعْتُمْ شُعَیْبًا اِنَّكُمْ اِذًا لَّخٰسِرُوْنَ ۟
उनकी जाति के काफ़िर एवं तौहीद के आह्वान को ठुकराने वाले प्रमुखों तथा सरदारों ने शुऐब अलैहिस्सलाम और उनके धर्म से सावधान करते हुए कहा : (ऐ हमारी जाति के लोगो!) अगर तुमने शुऐब का धर्म अपना लिया तथा अपना और अपने बाप-दादा का धर्म छोड़ दिया, तो निश्चित रूप से तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा।
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فَاَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَاَصْبَحُوْا فِیْ دَارِهِمْ جٰثِمِیْنَ ۟
चुनाँचे उन्हें भयंकर भूकंप ने पकड़ लिया, तो वे अपने घरों में विनष्ट हो गए, इस हाल में कि अपने घुटनों और चेहरों के बल अपने घरों में मृत और बेजान पड़े हुए थे।
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الَّذِیْنَ كَذَّبُوْا شُعَیْبًا كَاَنْ لَّمْ یَغْنَوْا فِیْهَا ۛۚ— اَلَّذِیْنَ كَذَّبُوْا شُعَیْبًا كَانُوْا هُمُ الْخٰسِرِیْنَ ۟
जिन लोगों ने शुऐब अलैहिस्सलाम को झुठलाया, वे सब के सब विनष्ट हो गए, और वे ऐसे हो गए जैसे वे अपने घरों में बसे ही न थे और उन्होंने इसका आनंद ही नहीं लिया था। जिन लोगों ने शुऐब अलैहिस्सलाम को झुठलाया, वही लोग घाटे में रहे; इसलिए कि उन्होंने अपना और अपनी धन-संपत्ति का विनाश किया। जबकि उनकी जाति के मोमिनों का कोई घाटा नहीं हुआ, जैसा कि इन झुठलाने वाले काफ़िरों ने दावा किया था।
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فَتَوَلّٰی عَنْهُمْ وَقَالَ یٰقَوْمِ لَقَدْ اَبْلَغْتُكُمْ رِسٰلٰتِ رَبِّیْ وَنَصَحْتُ لَكُمْ ۚ— فَكَیْفَ اٰسٰی عَلٰی قَوْمٍ كٰفِرِیْنَ ۟۠
जब उनका विनाश हो गया, तो उनके पैगंबर शुऐब अलैहिस्सलाम उनसे विमुख हो गए और उन्हें संबोधित करते हुए बोले : ऐ मेरी जाति के लोगो! मैंने तुम्हें वह संदेश पहुँचा दिया था जिसका मेरे पालनहार ने मुझे तुमको पहुँचाने का आदेश दिया था, तथा मैं तुम्हारा हितैषी व शुभ चिंतक बना रहा, किंतु तुमने मेरी ख़ैर-ख़्वाही (शुभचिंतन) को स्वीकार नहीं किया और मेरे मार्गदर्शन पर चलने को तैयार न हुए। तो भला मैं ऐसे लोगों पर शोक कैसे करूँ, जो अल्लाह के साथ कुफ़्र करने वाले हैं और अपने कुफ़्र पर अडिग हैं?
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وَمَاۤ اَرْسَلْنَا فِیْ قَرْیَةٍ مِّنْ نَّبِیٍّ اِلَّاۤ اَخَذْنَاۤ اَهْلَهَا بِالْبَاْسَآءِ وَالضَّرَّآءِ لَعَلَّهُمْ یَضَّرَّعُوْنَ ۟
तथा हमने किसी बस्ती में अपना जो भी रसूल भेजा, फिर उसके वासियों ने नबी को झुठला दिया और कुफ्र का मार्ग अपनाया, तो हमने उन्हें कठिनाई, ग़रीबी और बीमारी से पीड़ित कर दिया, ताकि वे अल्लाह के सामने अपनी विनम्रता प्रकट करें। जिसके परिणामस्वरूप वे अपने कुफ़्र और अहंकार को छोड़ दें। यह झुठलाने वाले समुदायों के बारे में अल्लाह की परंपरा का उल्लेख करके क़ुरैश के लिए तथा सभी इनकार करने और झुठलाने वालों के लिए एक चेतावनी है।
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ثُمَّ بَدَّلْنَا مَكَانَ السَّیِّئَةِ الْحَسَنَةَ حَتّٰی عَفَوْا وَّقَالُوْا قَدْ مَسَّ اٰبَآءَنَا الضَّرَّآءُ وَالسَّرَّآءُ فَاَخَذْنٰهُمْ بَغْتَةً وَّهُمْ لَا یَشْعُرُوْنَ ۟
फिर हमने तंगी और बीमारी से ग्रस्त करने के बाद उन्हें अच्छाई, विस्तार और सुरक्षा प्रदान की, यहाँ तक कि उनकी संख्या अधिक हो गई तथा उनकी धन-संपत्ति में वृद्धि हो गई और वे कहने लगे : हमें जो बुराई और अच्छाई पहुँची है, वह एक नियमित आदत है, जो पहले हमारे पूर्वजों को भी पहुँच चुकी है। उन्हें इस बात का एहसास नहीं हुआ कि वे जिस दुर्दशा से पीड़ित हुए थे, उससे उन्हें सीख लेना चाहिए था, तथा उन्हें जो नेमतें प्राप्त हुई थीं, उनका उद्देश्य ढील देना था। अतः हमने अचानक उन्हें यातना द्वारा पकड़ लिया और उन्हें यातना का एहसास भी नहीं हुआ और न ही वे इसकी कल्पना करते थे।
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ߟߝߊߙߌ ߟߎ߫ ߢߊ߬ߕߣߐ ߘߏ߫ ߞߐߜߍ ߣߌ߲߬ ߞߊ߲߬:
• من مظاهر إكرام الله لعباده الصالحين أنه فتح لهم أبواب العلم ببيان الحق من الباطل، وبنجاة المؤمنين، وعقاب الكافرين.
• अल्लाह के अपने नेक बंदों को सम्मानित करने की एक अभिव्यक्ति यह है कि उसने असत्य से सत्य को स्पष्ट करके, तथा ईमान वालों को मोक्ष प्रदान करके और काफ़िरों को दंडित करके, उनके लिए ज्ञान के द्वार खोल दिए हैं।

• من سُنَّة الله في عباده الإمهال؛ لكي يتعظوا بالأحداث، ويُقْلِعوا عما هم عليه من معاص وموبقات.
• अल्लाह की अपने बंदों के बारे में यह परंपरा रही है कि वह उन्हें ढील देता है, ताकि वे घटनाओं से सीख प्राप्त करें और उन अवज्ञाओं तथा विनाशकारी पापों को त्याग दें, जिनमें वे लिप्त हैं ।

• الابتلاء بالشدة قد يصبر عليه الكثيرون، ويحتمل مشقاته الكثيرون، أما الابتلاء بالرخاء فالذين يصبرون عليه قليلون.
• कठिनाई द्वारा परीक्षा पर बहुत से लोग धैर्य कर सकते हैं और उसके कष्टों को बहुत से लोग सहन कर लेते हैं। परंतु समृद्धि व संपन्नता के द्वारा परीक्षा पर कम ही लोग धैर्य रखते हैं।

 
ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌ߬ߘߊ߬ߟߌ ߝߐߘߊ ߘߏ߫: ߕߓߊߞߘߐߣߍ߲߫
ߝߐߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ ߞߐߜߍ ߝߙߍߕߍ
 
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ߡߍ߲ ߝߘߊߣߍ߲߫ ߞߎ߬ߙߊ߬ߣߊ ߞߘߐߦߌߘߊ ߕߌߙߌ߲ߠߌ߲ ߝߊ߲ߓߊ ߟߊ߫

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